सच्च .....
तुम्हारी याद अब भी है सिगरेट के अधबुझे टुकड़ों में बादलों के आगोश में छुपे धूमिल से चाँद में घर के पास खड़े पेड़ में छुपी कोयल की कूक में और सच बताऊँ तुम्हारी उतारी कमीज़ में जिसे रोज़ चुपके से एक बार ज़रूर पहनती हूँ मैं , सच्च ..... तुम्हारी याद अब भी है मीठे पान की गिलौरी में उसी रेस्तरां के मसाला डोसे में तुम्हारे पसंदीदा परफ्यूम में साँसों की ताजगी में और सच बताऊँ तुम्हारी किताबों में जिन्हें छूकर तुम्हें महसूस कर लेती हूँ मैं , सच्च ..... #दुआ