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ए ज़िंदगी

ज़िंदगी गुमशुदा सी हुई है ऐसे इसका पता अब ढूँढूँ कैसे हम  रक्स - ए - अकीदत यूँ कर बैठे अपनी आफ़ियत - ए - जाँ भुला बैठे कसूर उन बेकरारियों का भी था जो उनकी इबादत कर बैठे ये आफियत उनकी अकीदत अपनी हम खुदा से सब माँग बैठे 

मन की चाहत

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         बेवज़ह हँसना और खिलखिलाना चाहती हूँ ए माँ, मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ अपनी फ्रॉक को पकड़ गोल - गोल घूमना चाहती हूँ ए माँ मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ जीवन के सूनेपन को भूल ज़ोर से चिल्लाना चाहती हूँ ए माँ , मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ बचपन के वो खेल-खिलौने , गुड्डे गुड़िया , सपन सलोने उनमें फिर खो जाना चाहती हूँ ए माँ मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ तेरी गोद में छुपकर खूब रोना चाहती हूँ ए माँ, मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ बारिश के पानी में भीग कर, उछल कर कागज़ की किश्ती चलाना चाहती हूँ ए माँ , मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ क्यूँ हो गई मैं बड़ी , ये भूल जाना चाहती हूँ ए माँ , मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ