मन की चाहत

        


बेवज़ह हँसना और खिलखिलाना चाहती हूँ
ए माँ, मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ
अपनी फ्रॉक को पकड़ गोल - गोल घूमना चाहती हूँ
ए माँ मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ
जीवन के सूनेपन को भूल ज़ोर से चिल्लाना चाहती हूँ
ए माँ , मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ
बचपन के वो खेल-खिलौने , गुड्डे गुड़िया , सपन सलोने
उनमें फिर खो जाना चाहती हूँ
ए माँ मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ
तेरी गोद में छुपकर खूब रोना चाहती हूँ
ए माँ, मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ
बारिश के पानी में भीग कर, उछल कर
कागज़ की किश्ती चलाना चाहती हूँ
ए माँ , मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ
क्यूँ हो गई मैं बड़ी , ये भूल जाना चाहती हूँ
ए माँ , मैं फिर बच्चा बन जाना चाहती हूँ

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