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किंचित

राजहंस के श्वेत पंखों से कुछ सृजन कर जाऊँगी कभी कण्व , कभी व्यास सा किंचित कुछ लिख पाऊँगी #अर्चना अग्रवाल 

जब भी देखूँ तेरा चेहरा नज़र आए किताब खुले तो सफ़ा कहाँ नज़र आए तेरी बातें , तेरी यादें और आँखेंतेरी अल्फ़ाज़ में तेरी हँसी नज़र आए दिल लगा के मेरा हाल बुरा हो गया अब आईने में तेरी सूरत नज़र आए

अर्चना

काँच सा कच्चा मन हरा हो गया  फागुनी फिर सफर हो गया  ढोलकें , शंख , होरी , ऋचाएँ  मन गीतों का घर हो गया  हृदय स्पंदित , अप्रतिम प्रेम कल्पना में मिलन हो गया  पूज्य हो तुम ,आराध्य हो तुम 'अर्चना ' हर प्रहर हो गया ..  #दुआ