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ए ज़िंदगी

ज़िंदगी गुमशुदा सी हुई है ऐसे इसका पता अब ढूँढूँ कैसे हम  रक्स - ए - अकीदत यूँ कर बैठे अपनी आफ़ियत - ए - जाँ भुला बैठे कसूर उन बेकरारियों का भी था जो उनकी इबादत कर बैठे ये आफियत उनकी अकीदत अपनी हम खुदा से सब माँग बैठे