भीगे अंतस में मधुमास पलता है किसी का प्यार हमें रोज़ छलता है शिराएँ मोगरे सी महकने लगतीं मन की सीमा रेखा बहकने लगती पल-पल सिक्त हो उसी को ढूँढती आँखें जो मन के तार छेड़ कहीं छुपता है #दुआ
साँसों में सांसें यूँ घुलने लगीं मैं तेरे नाम से महकने लगी लरजता है यौवन ,बहकते कदम अंगड़ाई पोर - पोर चढ़ने लगी कौन कहता है इश्क है सजा मैं तो पींगें इसमें भरने लगी याद आए ,कांपने लगे हैं लब सोचूँ तुम्हें ,खुद से बातें करने लगी #दुआ
रात्रि की भीगी पलकें तुहिन कण बरसाती हैं मोती की माला बनती, विगत स्मृति खिंच जाती है दूर कहीं नीरव पथ पर जुगनू मद्धिम चमक रहे मेरी आशा के दीप जले, स्वप्न उस ओर बह चले संपूर्ण सृष्टि सुषुप्त सी मुरली बजती है जीवन की उर में कामना मिलन की प्रकृति सहचरी मेरे मन की वह पूर्ण चंद्र सुशोभित है व्योम चर है पूनम का ध्यान मग्न बैठी हूँ मैं, टूटता घेरा संयम का. #अर्चना अग्रवाल
ज़िंदगी से कुछ पल चुरा लिए तुम संग थोड़ा गा ,मुस्का लिए जाने कौन , कहाँ , कब किस मोड़ पर मिल जाए बने मन का साथी और अंतस पर छा जाए यूँ ही नत नयनों से छुप-छुप कर उन्हें देखा करूं ना बोलूँ अधरों से बस कविता लिखा करूं
इस दिल से धुंआ सा निकलता है जानम तुझसे इश्क भी है नाराज़गी भी तेरे पास ना होने का गम भी है दूरियों की कसक भी ज़िंदगी सिगरेट के टोटे की तरह हो गई हैं ऐश ट्रे भरी है पर काम की नहीं #दुआ