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Showing posts from March, 2017

किस्से-कहानियाँ

किस्सागो होना मुझे बचपन से पसंद है । किस्से-कहानियाँ सुनाती थी हमेशा सबको । एक हास्य पात्र बना रखा था कल्पना में , 'चिकलू'  इसकी ढेर सारी मज़ेदार कहानियाँ बनाकर सबको सुनाती थी । सब लोटपोट होते रहते , सुनते रहते , सच बड़ा मज़ा आता । किस्से राह में बैठे होते हैं इंतज़ार में कि कब कोई आए और उन्हें ले जाए , सहेज कर अपने साथ । हम हीं बहुधा नज़रअंदाज कर देते हैं उन्हें जीवन की भागदौड़ में । ज़रा रुकिए , ठहरिए सोचिए ना इतनी ज़ल्दी भी क्या है , एक किस्सा ले लीजिए ना , काम आएगा , सुनने - सुनाने के I गर्मी की लंबी दोपहर हो या सर्दियों की गुनगुनाती धूप - कहानियों के साथ कितनी खट्टी मिठ्ठी , मज़ेदार हो जाती है ना । तपते रेगिस्तान की जलती रेत जैसी ये ज़िंदगी और किस्से-कहानियाँ जैसे बारिश की फुहारें जो तन -मन को आप्लावित तो करती ही हैं , सौंधी महक भी ले आती हैं । तो देर किस बात की भीग जाइए ना इस बौछार में , कुछ कहिए कुछ सुनिये यूँ ही बीत जाएगा ये सुहाना सफर ।

Ishq h

Listen to Ishq H written by Munnawar Rana by archana aggarwal #np on #SoundCloud https://soundcloud.com/archana-aggarwal-765009910/ishq-h-written-by-munnawar

कुछ अज़ीब सी ख्वाहिशें

कुछ अज़ीब सी ख्वाहिशें जागी हैं मन में , जी चाहता है ढ़ेर सारी पतंगे खरीद लाएँ , लाल ,सुनहरी , नीली , पीली उन पर ख्वाहिशें लिखें अपनी और उड़ा दें आकाश में , चाँद , सूरज और तारों के बीच । तुम देखोगे उन्हें , पढ़ोगे उन्हें और समझोगे मेरे मन को तुम्हारे शहर के ऊपर से उड़ती हुई ये पतंगे गैलेक्सी में घूमेंगीं मेरे मन के रहस्यों को उद्घाटित करती हुईं । सुनो , इन्हें पढ़कर तुम भी मुझे खत लिखना , लाल, सुनहरी , नीले , पीले ढेर सारे I क्या हुआ जो खत का रिवाज़ नहीं है ,ये खूबसूरत हैं हमेशा से और रहेंगे । किसी लिफाफे पर अपना नाम , पता पढ़ना और उसे खोलकर पढ़ना कम रोमांच पूर्ण है क्या ? वो मज़ा आज कल की ईमेल और what's app message में नहीं आता ना तुम सोचोगे कितनी पुरातन पंथी है ये हाँ , सच ऐसी ही हूँ मैं , बूध्दू सी , पगली सी , सपनों में रहने वाली , इस दुनिया से दूर कहीं अपनी छोटी सी दुनिया में । जहाँ आँसू नहीं हैं , दुख नहीं हैं और शिकवे भी नहीं हैं । सुनो , तुम चलोगे मेरे साथ उस सुनहरी दुनिया में I

कुछ अनकही

कुछ कहना है जो शायद आज तक नहीं कहा या कहने की हिम्मत नहीं कर पाई। एक उम्र बीत जाती है मन की बात कह पाने में , कभी दुनिया का डर , कभी अपने आप से ही डर लगता है । शब्दों को तराशना, अंकित कर देना कभी भी आसान नहीं होता । एक सफर तय करना पड़ता है लंबा , अंधेरा और भयावह । तुम्हें शायद कभी पता नहीं चलेगा कि कितना चाहा तुम्हें , कितना पूजा तुम्हें और कितना याद किया तुम्हें ... काश... तुम समझ पाते । अगर मेरे दिल की कॉसिमक रेज़ तुम्हें छू पाती तो तुम जान पाते मेरे भावों को , हृदय के निष्पाप प्रेम को जो सिर्फ तुमसे शुरु होकर तुम पर खत्म हुआ । एक बार देखो मुझे , ज़िस्म की आँखों से नहीं , रूह की आँखों से । पढ़ो मुझे सरसरी नज़र से नहीं , दिल की गहराइयों से । छुओ मुझे हाथों से नहीं , भावों के रेशमी स्पर्श से । तो जान पाओगे मुझे , अर्चना को ,असली अर्चना को जिसे तुमने जाना ही नहीं तुम्हारे पास रहकर भी दूर रही और तुम दूर रहकर भी मेरे बहुत करीब रहे , सच कह रही हूँ मैं एकदम सच । काश... काश तुम समझ पाते