कुछ अज़ीब सी ख्वाहिशें
कुछ अज़ीब सी ख्वाहिशें जागी हैं मन में , जी चाहता है ढ़ेर सारी पतंगे खरीद
लाएँ , लाल ,सुनहरी , नीली , पीली
उन पर ख्वाहिशें लिखें अपनी और उड़ा दें आकाश में , चाँद , सूरज और तारों के
बीच ।
तुम देखोगे उन्हें , पढ़ोगे उन्हें और समझोगे मेरे मन को
तुम्हारे शहर के ऊपर से उड़ती हुई ये पतंगे गैलेक्सी में घूमेंगीं मेरे मन के रहस्यों
को उद्घाटित करती हुईं ।
सुनो , इन्हें पढ़कर तुम भी मुझे खत लिखना , लाल, सुनहरी , नीले , पीले ढेर
सारे I
क्या हुआ जो खत का रिवाज़ नहीं है ,ये खूबसूरत हैं हमेशा से और रहेंगे ।
किसी लिफाफे पर अपना नाम , पता पढ़ना और उसे खोलकर पढ़ना कम
रोमांच पूर्ण है क्या ?
वो मज़ा आज कल की ईमेल और what's app message में नहीं आता ना
तुम सोचोगे कितनी पुरातन पंथी है ये
हाँ , सच ऐसी ही हूँ मैं , बूध्दू सी , पगली सी , सपनों में रहने वाली , इस दुनिया
से दूर कहीं अपनी छोटी सी दुनिया में ।
जहाँ आँसू नहीं हैं , दुख नहीं हैं और शिकवे भी नहीं हैं ।
सुनो , तुम चलोगे मेरे साथ उस सुनहरी दुनिया में I
Baḍhiya Archana ji
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