कुछ अनकही
कुछ कहना है जो शायद आज तक नहीं कहा या कहने की हिम्मत नहीं कर पाई।
एक उम्र बीत जाती है मन की बात कह पाने में , कभी दुनिया का डर , कभी
अपने आप से ही डर लगता है । शब्दों को तराशना, अंकित कर देना कभी भी
आसान नहीं होता । एक सफर तय करना पड़ता है लंबा , अंधेरा और भयावह ।
तुम्हें शायद कभी पता नहीं चलेगा कि कितना चाहा तुम्हें , कितना पूजा तुम्हें और
कितना याद किया तुम्हें ... काश... तुम समझ पाते ।
अगर मेरे दिल की कॉसिमक रेज़ तुम्हें छू पाती तो तुम जान पाते मेरे भावों को ,
हृदय के निष्पाप प्रेम को जो सिर्फ तुमसे शुरु होकर तुम पर खत्म हुआ ।
एक बार देखो मुझे , ज़िस्म की आँखों से नहीं , रूह की आँखों से ।
पढ़ो मुझे सरसरी नज़र से नहीं , दिल की गहराइयों से ।
छुओ मुझे हाथों से नहीं , भावों के रेशमी स्पर्श से ।
तो जान पाओगे मुझे , अर्चना को ,असली अर्चना को जिसे तुमने जाना ही नहीं
तुम्हारे पास रहकर भी दूर रही और तुम दूर रहकर भी मेरे बहुत करीब रहे , सच
कह रही हूँ मैं एकदम सच ।
काश... काश तुम समझ पाते
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