खामोशी में लफ़्ज़ बोलते हैं
खामोशी में लफ़्ज़ बोलते हैं ज़ुबाँ न सही अक्स बोलते हैं जीने की जुम्बिश ज़रूरी है मगर कभी-कभी वीराने के सफ़र बोलते हैं खामोशी में लफ़्ज़ बोलते हैं जब ज़ज्बात भर जाए दर्द से बहते हुए अश्क बोलते हैं दिल की कहानी होती है बड़ी अजीब काँपते हुए लब बोलते हैं खामोशी में लफ़्ज़ बोलते हैं बहुत कुछ हम कहना चाहे तो आँखों के कोये बोलते हैं यूँ तो बावस्ता हैं हमसे खुशियाँ पर बेवज़ह गम के निशाँ बोलते हैं खामोशी में लफ़्ज़ बोलते हैं #दुआ