तुम ही

तुम्हारा छूना याद दिला देता है
देह को , औरत होने को
भूल जाती सारे दुख
समीप रहती केवल अंतरंगता
मादक स्पर्श , गंध तुम्हारी
दूर कहीं मुरली की धुन
प्रिय कर लगती कानों को
तुम तराशते मुझे ज्यों मूरत मैं                                      

वो संगमरमर की मूरत जो
नक्काशी की अद्भुत मिसाल है
रोज़ ढलती है नए रूप में , नए रंग में
यूँ ही तुम झरते रहो मुझ पर
भर दो मेरे खाली अन्तस को
ये सिर्फ़ तुम ही कर सकते
सिर्फ़ तुम ही

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