आकुलता
प्राण आकुल तन हो उठा अधीर
पुनः आज मलयज समीर
प्रिय स्मृति में गाए ललित गान
वनिता स्मित नयन कर बैठी मान
प्रेम भावना , मधुर पीड़ा धन्य
मानस चित्र प्रीति अनन्य
निस्तब्ध रात्रि सोए विहंग
मनोभाव में उठती तरंग
नित नए बाण छोड़े अनंग
भटकन हृदय में तृष्णा प्रसंग
दर्शन होंगे है अभिलाषा
अतिरंजित उर में उमड़ी आशा
शाश्वत अनुराग चिरंतन सत्य
मोहमुग्ध सृष्टि , स्पंदित नित्य
कांपे अधर , उन्माद निखरता सा
धूमिल दृष्टि स्वप्न विहँसता सा
सुख-दुख निरंतर सृष्टि लगे छलना
आह! उलझे अलकें ,आतुर सपना
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