Posts

Showing posts from April, 2017

संध्या

अंबर पथ से उतर रही अलसाती सी , मदमाती सी सौंदर्य गर्विता नारी है वो ज्यों नदी कोई बल खाती सी कवि गण की प्रेयसी है वो कर देती उन्हें अनुरागी कोमल कमनीय कंठ गूँज उठते कईं राग , विरागी संध्या सुंदरी के अवतरण से मंथर चलती है मलय ढोलकें , शंख , होरी, ऋचाएँ गा उठते व्यथित हृदय उड़ चले पाखी-पखेरू अपने नीड़ की ओर क्लांत पथिक करते विश्राम पकड़ इसकी छोर

आशा

.राह है दूभर विकल है तन , मन पुलकित नहीं है वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नहीं है किंतु , परंतु , आशा , निराशा सब हैं मन में आते पर भवितव्यता के बस में हम सब जीते जाते तिमिरावृत्त हो जीवन फिर भी पग हारे नहीं हैं नियति हो विरूद्ध पर हम कर्म से दूर नहीं हैं उत्ताल है लक्ष्य व अमूर्त हैं भावनाएँ आवागमन के चक्र में फँसकर रोती हैं आत्माएँ हे मनुज , तुम कर्मवीर हो फहरा दो विजय पताका शमशीर बनो , शूरवीर बनो , बनो स्वयं अपने विधाता

दो अजनबी

बार में घुसते ही उस गौरांग सुदर्शन युवक ने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई तो सारी मेजें भरी हुई थीं । मन में आया इस छोटे से शहर में इतने पीने वालें कहाँ से जुट गए तभी काँच की खिड़की के समीप वाली मेज जिस पर दो व्यक्ति ही बैठ सकते थे एक कुर्सी खाली दिखाई दी I शिष्टतावश सामने बैठे चालीस - पैंतालीस वर्ष के पुरुष से प्रश्न किया माफ कीजिए , क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ हाँ क्यों नहीं स्वर गहरा और स्थिर था । कहने वाले ने उसकी ओर देखा भी नहीं लगता है वह किसी और ही लोक में था । सीट पर बैठते ही गौरांग सुदर्शन युवक सजल ने शराब का आर्डर दिया और सौजन्यता वश सामने बैठे प्रौढ व्यक्ति को भी पेशकश की । पर वो प्रौढ व्यक्ति कहीं और ही खोये हुए थे , बातचीत के इरादे से सजल ने पूछा ,यहीं शिमला में रहते हैं आप ? वह प्रौढ व्यक्ति कुछ अनमयस्क से हो उठे जैसे कुछ बताना ना चाहते हो सजल सहज होकर बोला, "मैं आपके साथ अपनी पर्सनल खुशी सेलिब्रिट करना चाहता हूँ , आज ही मेरी गर्लफ्रैंड से सगाई पक्की हुई हैं हम दोनों भिन्न धर्मों से हैं , पर अंत में प्यार की जीत हुई और घरवालों को झुकना ही पड़ा " अब उस प्रौढ व

ऋतु वर्णन

ग्रीष्म ऋतु सूर्य भीषण ताप है देता शशि शीतल सुंदर शुष्क तालु मृग भटकते देख मरीचिका क्षण भर पावस ऋतु चातकों की तृषा कुल याचना स्वीकार शीघ्र करते हैं जलद श्यामल वर्षा कर प्राणघन आल्हाद भरते हैं शरद ऋतु रूपशालिनी शोभनीया नववधू सी शरद है नव उत्सव , हिम फुहार है अब कठिन है सुधाकर हेमंत ऋतु पके सुधान्य सीमांत ग्रामों में प्रचुर हैं तुहिनमय हेमंत पुष्प गंधित वदन है शिशिर ऋतु पहन भारी वस्त्र वनिताएँ मंथर चरण चलती हैं रात्रि काल दुखदायी प्रिये शीतल शिशिर आई बसंत ऋतु द्रुम कुसुममय , सलिल सरसिज अब कामरूचि कामिनी प्रति अंग में है पुलक भर Best of Swlekh #AajSirhaane #ऋतु वर्णन