दो अजनबी



बार में घुसते ही उस गौरांग सुदर्शन युवक ने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई तो सारी मेजें भरी हुई थीं । मन में आया इस छोटे से शहर में इतने पीने वालें कहाँ से जुट गए तभी काँच की खिड़की के समीप वाली मेज जिस पर दो व्यक्ति ही बैठ सकते थे एक कुर्सी खाली दिखाई दी I शिष्टतावश सामने बैठे चालीस - पैंतालीस वर्ष के पुरुष से प्रश्न किया

माफ कीजिए , क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ
हाँ क्यों नहीं

स्वर गहरा और स्थिर था । कहने वाले ने उसकी ओर देखा भी नहीं लगता है वह किसी और ही लोक में था ।

सीट पर बैठते ही गौरांग सुदर्शन युवक सजल ने शराब का आर्डर दिया और सौजन्यता वश सामने बैठे प्रौढ व्यक्ति को भी पेशकश की ।

पर वो प्रौढ व्यक्ति कहीं और ही खोये हुए थे , बातचीत के इरादे से सजल ने पूछा ,यहीं शिमला में रहते हैं आप ?

वह प्रौढ व्यक्ति कुछ अनमयस्क से हो उठे जैसे कुछ बताना ना चाहते हो

सजल सहज होकर बोला, "मैं आपके साथ अपनी पर्सनल खुशी सेलिब्रिट करना चाहता हूँ , आज ही मेरी गर्लफ्रैंड से सगाई पक्की हुई हैं हम दोनों भिन्न धर्मों से हैं , पर अंत में प्यार की जीत हुई और घरवालों को झुकना ही पड़ा "

अब उस प्रौढ व्यक्ति ने सजल को गौर से देखा और सपाट स्वर में कहा , congratulations.

पर उसके ठंडे स्वर से सजल आहत सा हो उठा , उसे लगा ये व्यक्ति खुश नहीं हुआ जैसे

उसने फिर बात छेड़ी , आपको क्या लगता है धर्म प्यार के बीच दीवार बन सकता है ?
मैं मानता हूँ प्यार में वो शक्ति है जो बड़ी से बड़ी बाधा को भी दूर कर सकती है "

अब वो प्रौढ व्यक्ति स्पष्ट सजल की आँखों में झाँकने लगा , ऐसा लगा एक दहकता ज्वालामुखी उसके भीतर है जो फटने को तैयार है।
अब सजल कुछ दहल सा गया , "आप कुछ कहना चाहते हैं ?"

"सुन पाएंगे आप ?
हाँ , हाँ क्यों नहीं

तो सुनिये , ये प्यार में शक्ति जैसे डायलॉग हमने भी बहुत बोले हैं पर जीवन की वास्तविकता इन सबसे दूर होती है बहुत दूर

अब सजल गंभीर मुद्रा में टकटकी लगाकर बैठ गया

मैं और नाज़िया एक साथ कॉलिज में पढ़ते थे एक साथ ही आई० ए० एस की तैयारी भी की , उसे मेरी और मुझे उसकी आदत सी हो गई थी , आई० ए० एस में सेलेक्ट भी दोनों एक साथ हुए , एक साथ मसूरी एकेडेमी में ट्रेनिंग ली और साथ ही साथ जीने मरने की कसमें भी खाईं

पोस्टिंग से पहले मैं उसे अपने घर ले गया माँ बाबूजी से मिलाने ॥ विप्र कुल है हमारा , भारद्वाज गोत्र ।
पिता ज्योतिष के प्रकांडविद्वान ॥ नाजिया को देख वो टूट से गए बस यही बोल पाए , "होई है वही जो राम रचि राखा "

बेटा तुम्हारी कुंडली में यही योग था , बस अब इतना कहना है कि कभी ऊंचाई पर घर मत लेना , अपना बसेरा कहीं और बसा लो

मैं अपने नए पद और प्यार के जोश में उन्मत्त उनके आँसू भी न देख पाया या यूँ कहो कि देखना नहीं चाहता था ।

उच्च पद , सुख सुविधाएँ, आलीशान घर सबमिल गया नौकरी में
मैं और नाज़िया एक दूसरे में खोए , दुनिया से दूर अपनी छोटी सी दुनिया में मस्त I
दिन सोने के , रातें चाँदी की

अब सजल भी एकाग्र हो सुनने लगा उनकी आपबीती

वो दूर कहीं एकांत में देखते हुए कहने लगे , " प्रेम , प्यार या लव इनका ज्वार जब उतरता है तो बाढ़ के पानी की तरह बदबू , सड़ांध और गंदगी छोड़ जाता है
शुरु - शुरू में तो सब अच्छा लगा पर धीरे मैंने अनुभव किया कि नाज़िया अपने धर्म के सब कायदे निभाती पर मेरी आस्थाओं का मखौल

तुम पत्थर क्यों पूजते हो ?

रूद्राभिषेक से क्या भगवान मिल जाएंगे तुम्हें ?

जैसे अनेक वाहियात प्रश्न करती मैं उसका बचपना सोच अनसुना कर देता पर अपनी पूजा पाठ न छोड़ता I

मैंने कभी उसकी नमाज़ पर अवांछित टिप्पणी नहीं की क्योंकि मैंने उससे प्यार किया था उस पर स्वामित्व नहीं ।

पर वो अपनी मर्यादा भूलती जा रही थी कभी मुझे धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डालती तो कभी मांसाहार परोस देती , मैं कभी हाथ भी नहीं लगाता था ऐसे खाने को।
पर उसे टोकता भी नहीं था कुछ भी करने पर।

अब ज़िंदगी नरक होती जा रही थी एकांत में पिता के आँसू याद आते तो कलेजा मुँह को आता , पर अब क्या हो सकता था ? ये रास्ता मैंने खुद चुना था

उनकी हर बात को नहीं माना , प्रत्यक्ष रूप में समाज में हमारी छवि एक हैप्पी मैरिड कपल की थी जो मैं मन मारकर निभाए जा रहा था ।

कितना कठिन होता है आँसुओं को पीकर मुस्कुराते हुए घुट घुट कर जीना
ये मुझसे बेहतर कौन जान सकता है ?

ऐसे ही एक शिवरात्रि के दिन मैं उपवास पर था । पूरा दिन भूखा रहकर मैं ऑफिस से घर आया तो नाज़िया ने व्यंग्य से स्वागत किया , करलो अपनी पत्थर पूजा

मैंने कवाब बनाये हैं तुम्हारे लिये

मैं दिन भर का भूखा प्यासा , सर्वांग जल उठा मेरा

मैंने उसे बातों बातों में फ्लैट की बालकनी में बुलाया जो आठवें फ्लोर पर था

अचानक नीचे देखने को कह मैंने उसे जोर से धक्का दे दिया , वो संभल नहीं पाई और गिरकर मर गई ।

कांप उठा नख से शिख तक सजल ये सुन कर
फिर ? बस इतना ही बोल पाया वह

फिर कुछ नहीं , तटस्थ भाव से प्रौढ व्यक्ति ने कहा
पुलिस आई , आसपास पूछताछ की , एक दुर्घटना समझ कर केस क्लोज़ हो गया

कानून की नज़र से मैं बच गया , पर खुद को कभी माफ नहीं कर पाया ।
आज भी सिंगल हूँ और हमेशा रहूँगा

प्यार एक बहुत बड़ी नियामत है पर इसे निभाने के लिए बहुत बड़े दिल चाहिए , आत्माओं का मिलन चाहिए , शारीरिक आकर्षण प्यार नहीं है मेरे दोस्त । जीवन में हमसफर तो कई मिल जाते हैं पर सच्चा साथी हर कोई नहीं बन सकता I
मेरी राय है यौवन की उमंग में कोई बड़ा निर्णय मत लेना   ।                                 इतना कह वह प्रौढ व्यक्ति उठ खड़ा हुआ ,सजल ने नोट किया उसने शराब के गिलास को हाथ भी नहीं लगाया था।
अवाक्‌ देखता रह गया सजल उसे Iबाहर शाम गहराती जा रही थी , साये लम्बे हो चले थे और सड़क सुनसान जो न जाने किस मंजिल को जाती थी                                 सच में कुछ अजनबी हमेशा याद रह जाते हैं जीवन के सफर में .....

ये कहानी आजसिरहाने प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार से सम्मानित की गई 

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