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Showing posts from June, 2019

घड़ी

कुछ घड़ी होती उर्वर नमी पा अश्रु जल की प्रस्फुटित कर देतीं कोंपले काव्य की कुछ पल होते बंजर सदृश भावों , अनुभावों से इतर संवेदनाओं से शून्य रिक्तता से आवृत्त बस , इन दोनों के मध्य ही कहीं तुम्हें गढ़ना है ..... #दुआ

प्रेम कथा

प्रेम के ज्यामितीय आकारों में मुझे वृत्त पसंद था क्योंकि वो केवल तुम्हारे चहुँओर था और तुम्हें त्रिकोण चूंकि वो किसी तीसरे के साथ था मैं वृत्त में तुम्हारे इर्दगिर्द घूमती रही तुम किसी तीसरे के साथ भी बस , इतनी सी थी हमारी प्रेम कथा .. #दुआ

तू जाने

तेरे दिल की चौखट पे सज़दा कर दिया मैंने अब इकरार तू जाने , इन्कार तू जाने इश्क की तमाम रस्में अदा की मैंने अब वफ़ा तू जाने , ख़ता तू जाने #दुआ

और कहाँ

रुधिर पूर्त नसें भयंकर ज्वाला शमन उपचार प्रिय ने निकाला बाधा , विलंब ना माने मन क्षण भर सुख शीतल तन आहत मान हुआ पराभूत स्मृति बनी शांति दूत जीवन जागरण , सुषुप्ति मरण माँस मज्जा का ये आवरण कुछ प्रकाश धूमिल सा दीख रहा मौन खिन्न , अवसाद भरा दूरागत ध्वनि सुनती यहाँ ऐसी निस्तब्धता और कहाँ #दुआ

मिलन

आदित्य अवसान हुआ नभ में  मैं पुलक , रोमांचित हुई हिय में  अति उत्सुक शशि स्वागत के लिए  संध्या मादक हुई अपरिमेय   तिमिर आच्छादित प्रांगण में  पिय की छवि है कंगन में  दीप प्रज्जवलित शोभायमान  मिलन बेला निकट जान  #दुआ

ध्यान

हृदय में जागी नव अभिलाषा कुछ अतिरंजित कुछ उत्प्रेरक सी विचारों की यह नव तरिणी होती अग्रसर नवयौवना  सी मैं तटस्थ बैठी ध्यानमग्न देख रही ये नव विचलन जीवन का नूतन मार्ग यह अहा ये कैसी नवसृष्टि नेत्र उन्मीलित पलकें संकुचित श्वास स्वर मध्यम मैं अंतस में उतर गई हुआ प्रकाश पुंज साक्षी मेरा नवजीवन मैंने प्राप्त किया हे सृष्टि नियामक धन्यवाद तेरा #दुआ

सपना

रोज़ देखती हूँ एक सपना रोज़ तोड़ देती हूँ पसीने से सीज़ी हथेली पर कितने रंग संजोती हूँ आकाश पर उड़ती चील कलम मेरी छीन लेती है अधूरी कुछ कहानियाँ , कुछ कविताएँ इर्द-गिर्द मंडराती हैं गीली भावनाएँ , प्यासी आँखें फिर दिखाती हैं नया सपना #दुआ

नशा

इक चाहत नशे में कैद होने की नशा बोतल का होता तो मुनादी सरेआम करती ज़ालिम नशा - ए - झ्श्क जो ना जीने दे  ना मरने दे

बसंत तुम

मधुमय बसंत तुम जीवन धन तुम अलसाई अलकों में राग चंद्र तुम कुंतल जाल पाश में मेरे हृदय को करती कैद तुम पुलकित , उन्नत सर्वांग मेरा मधुकरी का संचित धन तुम

चिठ्ठी

आज भी याद आती है वो कलम से लिखी चिठ्ठी जिस पर मिलती थीं अपनों की खबरें वो दुख की तस्वीरें वो सुख की तहरीरें पेड़ों पर लगे आम खेतों में लहलहाता धान सब दिखता था उसमें अम्मा की दवा का ब्यौरा छोटू की फरमाइशें सब खो गया कहीं what's app से फारवर्ड जो हो गए हम #दुआ

कुर्सी

हे कुर्सी माता कैसे करूँ मैं तेरी श्लाघा तुम ही जग को नचाती हो स्वप्न में नित भरमाती हो छ्ल, प्रपंच सब तुम्हरे कारण दूध मलाई दे जाती हो ठाठ - बाठ सब नौकर-चाकर संग अपने लाती हो निशिदिन करूँ आरती मैया दे दो अपनी कृपा की छैयाँ #दुआ