घड़ी


कुछ घड़ी होती उर्वर
नमी पा अश्रु जल की
प्रस्फुटित कर देतीं
कोंपले काव्य की
कुछ पल होते बंजर सदृश
भावों , अनुभावों से इतर
संवेदनाओं से शून्य
रिक्तता से आवृत्त
बस , इन दोनों के मध्य ही कहीं
तुम्हें गढ़ना है .....
#दुआ

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