और कहाँ
रुधिर पूर्त नसें भयंकर ज्वाला
शमन उपचार प्रिय ने निकाला
बाधा , विलंब ना माने मन
क्षण भर सुख शीतल तन
आहत मान हुआ पराभूत
स्मृति बनी शांति दूत
जीवन जागरण , सुषुप्ति मरण
माँस मज्जा का ये आवरण
कुछ प्रकाश धूमिल सा दीख रहा
मौन खिन्न , अवसाद भरा
दूरागत ध्वनि सुनती यहाँ
ऐसी निस्तब्धता और कहाँ
#दुआ
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