चेहरा
चेहरों पर चेहरे सजाए हुए हैं
सब ही मुखौटे लगाए हुए हैं
होठों पे बैठे खामोशी के पहरे
दिल में दर्द के सागर गहरे
कर जाती त्रुटि मैं पढ़ने में उनको
हो जाती कुंठित मेरी चेतना
समय के अरण्य में सब खो जाता है
आह, मुझे क्या हो जाता है ?
हर पग तले श्वास दबती जाती है
ज़िंदगी क्या से क्या हो जाती है
सोचती हूँ नोच दूँ ये आवरण उनके
फिर ठिठक कर रुक जाती हूँ
ओह मैं मूक सी हो जाती हूँ
#दुआ
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