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Showing posts from February, 2018

यूँ ही ......

यूँ ही बैठे-बैठे सोचती हूँ मैं क्या वो भी मुझे सोचता होगा जब सुनाई देती होगी मेरी सदा क्या पलट कर देखता होगा जब गिरती होंगी बारिशें क्या मुझे खोजता होगा उतरती होगी जब शाम नशीली क्या मेरा अक्स उकेरता होगा किस्सों ,कहानियों में क्या मुझे ढूँढता होगा टी वी पर जब देखता होगा गाने क्या मेरे संग नाचता होगा करता होगा जब इबादत मेरे लिए दुआ माँगता होगा बिछड़ने के गम में अब भी क्या अश्क बहाता होगा #दुआ

जीत कैसी है

हार कैसी है ये जीत कैसी है प्रिय तुमसे ये प्रीत कैसी है रूष्ट होना फिर मिलना प्रणय में ये रीत  कैसी है मिलन में पुनः अवरोध है कैसा स्व को खोने का बोध है कैसा सौंप दिया तुझे जब अपने जीवन को मेरे हृदय में भीत कैसी है खुद ही लिखते हो नियम तुम सारे मेरी बाजी भी तुम ही चलते हो खेलने का ढोंग है कैसा द्वंद ही द्वंद जीत कैसी है #दुआ

पी का वियोग

नयनों में डोरे लाल पी का वियोग है भारी जागे गोरी रात भर जीवन संग्राम कटारी चिर वियोग की ज्वाला है दग्ध हो उठा हृदय कठिन है ये साधना बहुत किंतु पावन है प्रणय केश हैं  रूखे , होंठ हैं सूखे दयनीय है अब हाल कभी स्वर्णिम था अतीत परंतु अब दुष्कर है ये काल #दुआ

मेरा नाम , तुम्हारा नाम

उड़ चलो मेरे साथ दर्द को अंगीकार कर नीले आकाश से ऊपर अनंत क्षितिज की ओर एक मधुर तान कहीं दूर से आ रही है तुम मेरी रात्रि के चाँद हो ताकि मैं देख सकूँ खूबसूरत सितारे मदमाता इत्र बिखर रहा है चारों ओर प्रकृति बरसा रही है खूबसूरत फूलों की पंखुरियाँ जिन पर लिखा है मेरा नाम तुम्हारा नाम #दुआ

चाँद को बताया जाए

इस शहर से मन भर गया यारों चलो शहर कोई दूसरा बसाया जाए बिना मतलब के भी बात कर लो क्या ज़रूरत है मतलब पे याद आया जाए उगते सूरज को सब सलाम करते हैं कभी अँधेरो से दिल लगाया जाए हो ही जाती है सबसे गलती कभी ना कभी क्या ज़रूरी है फ़ासला बढ़ाया जाए दिल में छुपी रहती हैं मासूम ख्वाहिशें कितनी क्यों न आज चाँद को बताया जाए #दुआ

हाँ मुझे चलना होगा

हाँ मुझे चलना होगा सांझ की देहरी का दिया बन जलना होगा हाँ मुझे चलना होगा आग और पानी का खेल चले ज़द्दोज़हद की लड़ाई चले लक्ष्य तक पहुँचना होगा हाँ मुझे चलना होगा शब्दों के दावानल घेरे ज़िंदा रहने की तड़प पले मृत्यु भी शिकंजा कसे किसी अणु में पलना होगा हाँ मुझे चलना होगा भीतर मेरे है कोई जाग रहा जो नित्य नव समर लड़ा पुनः विश्वास् ढूँढना होगा हाँ मुझे चलना होगा मार्ग में कंटक मिले पाँव में छाले पड़े घाव को भूलना होगा हाँ मुझे चलना होगा #दुआ

कुछ शेष रह जाता है

हृदय के सादे कागज़ पर कोलाहल रचने लगती हूँ कलम जब चलती है निरंतर आग से गुज़रने लगती हूँ विडम्बना ये है फिर भी कुछ शेष रह जाता है कहती हूँ हर बार बहुत कुछ एक कोना अछूता रह जाता है #दुआ

फिर आऊँगी

आज फिर तेरे शहर में घूमने गई कुछ यादें मिलीं सीली - सीली कुछ तहखाने देखे घुप्प अँधेरे जहाँ दफन थीं तेरी मेरी बातें हो सके तो बारिश की चंद बूँदे संजो लेना मैं आऊँगी लेने यदि ज़िन्दा रही फिर तेरे शहर का चाँद रूमानी मिला कहता कोई भूली कहानी मिला सितारे भी टिमटिमाते मिले कुछ तेरी याद दिलाते मिले संदली हवा भी कुछ खोई थी शायद किसी की याद में रोई थी कुछ नज़्में संजो लेना मैं आऊँगी लेने यदि जिंदा रही फिर वही गुलमोहर रूमानी मिला प्रेम कथा कहता ज़ुबानी मिला नुक्कड़ पर चाय की गुमटी मिली यारों की टोली बैठी मिली बस तेरी मौज़ूदगी खोई थी आँख खुश्क अश्क रोई भी एक प्याला चाय मंगा लेना पीने आऊँगी यदि ज़िंदा रही #दुआ

सिसकियों की मर्म व्यथा

लिख दी सिसकियों ने मर्म व्यथा कुछ आधी - अधूरी रही कथा संध्या धूमिल थी , दीप प्रज्जवलित रुकी वायु , जीवन प्रतीक्षित मन था भयमय , मौन सतत प्रहरी बस मैं ही मैं , और कोई नहीं खिन्नता ,अवसाद थे भरे हुए अग्नि शिखा भी धधक रही संपूर्ण नगर है क्षुब्ध , त्राण कंठ में अटके जैसे प्राण शशि नभ में यूँ  टहल रहा  क्यूँ अन्तर ऐसा मचल रहा विष विषाद आवरण है चहुँ ओर पीड़ामय तन का पोर-पोर करूणा सिंधु है बह रहा जीवन , आह तू व्यर्थ कटा रागिनी संध्या हो चुकी काली रोए फूल , निराश माली नयनों में उपालंभ की छाया यत्र सर्वत्र झूठी माया जीवन विक्षुब्ध , झंझा प्रवाह मनु करता अनवरत कराह नहीं ओर - छोर इतना अथाह ढूंढना कठिन जो आज बहा विस्मृत अतीत जो था शांत वह सुंदर सुष्ठु चित्र कांत अब निस्तब्ध गगन है अधीर अचेतन चेतना , पिछड़ा समीर #दुआ