जीत कैसी है
हार कैसी है ये जीत कैसी है
प्रिय तुमसे ये प्रीत कैसी है
रूष्ट होना फिर मिलना
प्रणय में ये रीत कैसी है
मिलन में पुनः अवरोध है कैसा
स्व को खोने का बोध है कैसा
सौंप दिया तुझे जब अपने जीवन को
मेरे हृदय में भीत कैसी है
खुद ही लिखते हो नियम तुम सारे
मेरी बाजी भी तुम ही चलते हो
खेलने का ढोंग है कैसा
द्वंद ही द्वंद जीत कैसी है
#दुआ
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