आ , तुझे अमर बना दूँ
अहा फागुन का चाँद
उतर आया मन आकाश में
करूँ आत्मबोध
कभी आत्मशोध
शाश्वत नहीं ये जीवन
तो क्यूँ ना करूँ काव्य सृजन
भाव-भूमि पर पुष्प खिला दूँ
आ तुझे अमर बना दूँ
अतीत के झरोखों से
स्मृतियों के ताने-बाने से
यौवन की उमंगों से
कुछ पुराने चित्रों से
फिर तेरी तस्वीर बना दूँ
आ तुझे अमर बना दूँ
#दुआ
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