विगत
विगत को निहारती हूँ
कुछ मादक स्मृतियाँ पाती हूँ
कुछ मधुरा हैं , कुछ त्वरा हैं
कुछ पुलक भरी कुछ अतिरंजित
कभी राग-विराग , कभी संकुचन
कभी निराशा कभी जीवन धन
कभी व्याकुलता कभी आकुलता
कभी भ्रांत हुई कभी शांत रही
था समर्पण कहीं ,आकर्षण कहीं
नितांत अपरिचित थी नियति
सतत प्रेरणा थी संग - संग
देखे मैंने कुछ नव्य रंग
कहीं प्रस्तर मिले मार्ग में
थीं कहीं गुह्य कंदराएँ
कहीं गुलमोहर थे खिले हुए
कहीं सूखे पत्ते गिरे हुए
#दुआ
Wah
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