कुबुल करना चाहती हूँ ..
कुछ भूलना , भुलाना चाहती हूँ
इस ज़िस्म से आज़ाद होना चाहती हूँ
राख के ढेर में हैं चिन्गारियाँ बहुत
इन्हें शोलों में बदलना चाहती हूँ
जी डूब रहा मेरा शाम के साथ-साथ
अब कयामत महसूस करना चाहती हूँ
गरदिशे दौरां ने सिखाया है बहुत
अब ग़म कुबूल करना चाहती हूँ
#दुआ
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