काव्य सृजन
बिखरे क्षण समेटना चाहती हूँ
हाँ काव्य सृजन करना चाहती हूँ
फिसलते वो ज्यों हो रेत के कण
छितरते वो ज्यों हो ओस के कण
मुक्त हो जीना चाहती हूँ
हाँ काव्य सृजन करना चाहती हूँ
मिटता है प्रतिपल अस्तित्व पलों का
होता है स्पर्श रेंगती ज़िंदगी का
इन्हें कागज पर उकेरना चाहती हूँ
हाँ काव्य सृजन करना चाहती हूँ
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