सुलझा लिया जाए

चलो आज रंग-बिरंगे धागों को सहेज लिया जाए
उलझने हैं बहुत क्यों न सुलझा लिया जाए
कश्मकश नाजुक वक्त की है बड़ी
मन को ठहरा कर गहरी साँस ली जाए
कौन है यहाँ जो साथ देता है उम्र भर
थोड़े साथ को ही शुक्रिया कहा जाए
दाग दिल के भी होते हैं बहुत अच्छे
बस हर कहीं नुमायाँ ना किया जाए
क्यों वफ़ा की उम्मीद रखती हो 'दुआ '
ये वो दौर है जहाँ रिश्तों को भी बेचा जाए

#दुआ

Comments

Popular posts from this blog

जब भी देखूँ तेरा चेहरा नज़र आए किताब खुले तो सफ़ा कहाँ नज़र आए तेरी बातें , तेरी यादें और आँखेंतेरी अल्फ़ाज़ में तेरी हँसी नज़र आए दिल लगा के मेरा हाल बुरा हो गया अब आईने में तेरी सूरत नज़र आए

अखबार

सिसकियों की मर्म व्यथा