ज़िंदगी क्या है ?
ज़िंदगी क्या है ? दवा , दुआ , सफर या एक अनजाना सा रास्ता
ये तो पता नहीं पर इतना जानती हूँ कि इस रास्ते के अंतिम छोर पर एक उजली रोशनी है
लोग उसे मौत कहते हैं , काली छाया कहते हैं लेकिन मुझे ऐसा कभी नहीं लगा
मैंने दर्द के अनंत सागर में डूब अनेकों बार इसे छुआ ये मुझे रूई के फाहों की तरह खुशनुमा लगी । देह से निकलकर उड़ी हूँ भारहीन , चिंताविहीन अवस्था में ये सुखद अहसास रहा मेरे लिए । सारा दुख तो इस काया के साथ काया के बाद तो आनंद ही आनंद I ना सामाजिक विवशताएँ और ना ही कोई दायित्व । किंकर्त्तव्यविमूढ़ता , ये दायरे , ये बंधन सब छूट जाएँ तो फिर कैसी पीड़ा ?
मुझे आकर्षित करता है वो प्रकाश , रिझाता है , व्याकुल हूँ अन्तर्मन से उसमें समाहित होने के लिए पर मुझे पता है अभी शेष है कुछ जो भोगना है ।
कभी -कभी इस संसार की हर चीज़ से मन उचाट हो जाता है भरसक प्रयास करने पड़ते हैं मन लगाने के लिए यहाँ
क्योंकि अभी जीना है मुझे
हाँ अभी जीना है कुछ और
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