चाँद की ज़मीं

चाँद की ज़मीं पर खेती करनी है
बोने हैं कुछ सपने , कुछ भाव सलोने
अश्रु जल से सिंचाई कर
रोज़ निगहबानी करनी है
चाँद की ज़मीं पर खेती करनी है ...

जो मिल ना सका इस धरती पर
उसकी फसल उगानी है
निराई , गुड़ाई कर 
दिल की खुशियाँ पानी हैं
चाँद की ज़मीं पर खेती करनी है

#दुआ

Comments

Popular posts from this blog

जब भी देखूँ तेरा चेहरा नज़र आए किताब खुले तो सफ़ा कहाँ नज़र आए तेरी बातें , तेरी यादें और आँखेंतेरी अल्फ़ाज़ में तेरी हँसी नज़र आए दिल लगा के मेरा हाल बुरा हो गया अब आईने में तेरी सूरत नज़र आए

अखबार

सिसकियों की मर्म व्यथा