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Showing posts from September, 2019

चाँद देखना

तुम अपने शहर में चाँद देखना मैं अपने शहर में मैं उसमें खारे पानी का दरिया देखूँगी तुम भावनाओं के ज्वार देखना वहाँ हमारा छोटा सा घर भी है जिसके दरवाज़े नीलम से बने हैं और रसोई की चिमनी पुखराज से कंदील सितारों के हैं तो खिड़की बादलों की गृह तोरण इंद्रधनुष का ** #दुआ

मेरे सिरहाने

मेरे सिरहाने तेरी यादों के साये हैं आज फ़िर तेरी रहगुज़र में आए हैं वो दूर सुनहरी ख्वाबों की बस्ती है अकीदत से हम उसे बसा आए हैं दिल की दुनिया है बड़ी संगीन सी बस तज़ल्ली हिज़ाब में छुपा लाए हैं कौन है जो रूखे-रोशन नुमायां करता है ख़ाक को मेहरे - ताबां कर लाए हैं एक नूर सा छाया है चारों तरफ़ मुझे लगा वो बेनकाब आए हैं रक्स आफ़ताब का है प्यारा बहुत हम उसे जलता हुआ छोड़ आए हैं आफ़ियत मेरी अब उनसे पूछिए वो अब मेरे मालिक बन आए हैं #दुआ

आज दिल

आज दिल कुछ उदास सा है ज़ख्म भी कुछ खास सा है शिद्दत से निभ जाती थी वो रस्म हाल उसका बदहवास सा है शाम से ही धुंधली यादों का हुजूम मेरे तन्हा दिल के आस-पास सा है मैं चाहती थी वो भी मुझे याद करे पर उसका रूख कुछ नासाज़ सा है अहसास दर्द देते हैं गहराई तलक ए दिल तू क्यों गम - शनास सा है #दुआ

जीना चाहती हूँ

कुछ पन्ने फ़िर लिखना चाहती हूँ मैं ज़िंदगी दोबारा जीना चाहती हूँ मिटा दूँ कालखंड से चॉक के निशाँ डस्टर से अतीत पोंछना चाहती हूँ बनूँ फ़िर अपनी मर्जी की मालिक तकदीर फिर लिखना चाहती हूँ न ही कोई विवशता न भय मैं खुल के साँस लेना चाहती हूँ जिऊँ फिर से अपनी शर्तो पर ए ज़िंदगी तुझे अपनाना चाहती हूँ #दुआ

कभी-कभी

कभी-कभी ख़ुद से बातें करने को जी करता है कभी-कभी ख़्वाबों में रहने को जी करता है ज़िंदगी हर लम्हा रंग बदलती है इन रंगों में रंग जाने को जी करता है दूर है मंज़िल , सफ़र भी है मुश्किल पर एक पल में ही पहुँच जाने को जी करता है महफ़िल में फैली हो जब खामोशी हर तरफ फ़िर तन्हाइयों में रहने को जी करता है ख़ुशियों की दुकानों में मिलती हैं नकली ख़ुशियाँ अब तो मुफ़्त के गम ही पाने को जी करता है कभी-कभी ख़ुद से बातें करने को जी करता है #दुआ

सच कहो

सच कहो अब भी तुम्हारे ज़हन में आती हूँ क्या ? यूँ चौखट पर खड़े तुम्हारा इंतज़ार करती पाते हो क्या ? वो तुम्हें ढूँढती निगाहें वो बेकली मुझमें पाते हो क्या कुछ कहने को हिलते पर बड़े ख़ामोश लब देखते हो क्या ? तुम्हें ना पाकर उदास होकर वापिस जाते पाते हो क्या ? सच कहो अब भी तुम्हारे ज़हन में आती हूँ क्या ?

प्रेम गीत

कसमसाती देह पर अंकन छोड़ दो कान में गुनगुना कर मकरंद घोल दो हम आप घुल जाएँ यूँ इत्र की तरह यौवन का लरजता तटबंध तोड़ दो मन से मन , तन से तन कुछ मिले इस तरह उफनती नदी का चलन मोड़ दो मैं सिमट कर लाज से दोहरी हो जाऊँ प्यार की ऐसी मीठी चुभन छोड़ दो हृदय मेरा तरल हो बावरा हो जाए धड़कन में कुछ ऐसा स्पंदन हो जाए जो भी देखे हमें वो ही कहने लगे काश अपना भी ऐसा मिलन हो जाए मैं तपती बालू हूँ तुम हो मधुरस प्रिय बिखरी पंखुरी तुम हो डोर प्रिय उलझी लट है मेरी सुलझा दो प्रिय प्रेम संचित निधि दिखला दो प्रिय बंध, अनुबंध क्यूँ हो परिणय में गहरी प्रीत छुपी है अनुनय में भाव , अनुभाव अब मिले इस तरह सात जन्मों का ये वचन जोड़ दो #दुआ

खलिश

कुछ एहसास भीगे - भीगे से हैं कुछ कागज़ पर नमी आई तो है तेरे दिल में कुछ खलिश सी है वो बात ज़ुबाँ पर आई तो है #दुआ

अभी ठीक से

अभी ठीक से कहाँ  देख पाई तुम्हें अभी ठीक से कहां चीन्ह पाई तुम्हे                         तुम जो परत दर परत खुलते रहे अभी ठीक से कहां समझ पाई तुम्हें अंतर्मन की गुफा अंधेरी उसमें ना चलती हेरा फेरी कौन है अपना कौन पराया मैं ना समझ पाई  यह माया अभी ठीक से कहां छू पाई तुम्हें अभी ठीक से कहां देख पाई तुम्हें #दुआ

तलबगार ना थे

उनसे ना मिले थे तो तलबगार ना थे और कुछ भी थे मगर बेज़ार ना थे वो जो कसक सी लगे है दिल में हालात अपने आज़ार ना थे ये तीरगी है मेरे मुकद्दर की मेरे हिस्से में ख़ार - ज़ार ना थे सब्र हो तो मोहब्बत कैसी मुन्तज़िर दिल में करार ना थे मेरी निगाह ने ना कुछ बयाँ किया तेरी निगाह से क्या आश्कार ना थे तेरे वादे पे हम जीते हैं सनम मर जाते जो ये ऐतबार ना थे #दुआ

अहसास की खुशबू

घाव अच्छे हैं अब लगते, दर्द होता है थोड़ा सा ये दुआएँ तुम्हारी हैं , मुझे पहले पता ना था तुम दिल के पास हो इतने ,धड़कते हो सीने में मैं ख़ुद को भूल जाती हूँ , मुझे पहले पता ना था ज़िस्म की बंदिशें भूली , भटकती हूँ रूह बनकर ये अहसास की खुशबू , मुझे पहले पता ना था चाँद नमकीन होता है , चखा था कल रात मैंने ज़बाँ का ये ज़ायका , मुझे पहले पता ना था आँखों - आँखों में कह देते हो हज़ारों बातें गुफ़्तगू का ये सिलसिला , मुझे पहले पता ना था #दुआ

संध्या

शांत स्पंदन जल लहरी मैं आ बैठी सागर- तीरे नियति शासन से विवश संध्या अवतरित हुई धीरे-धीरे अश्रु संग तम घोल लिखती पिय वियोग का वह इतिहास कहीं दूर एक नन्ही पाखी सहसा कर बैठी मृदु हास क्यूँ तू इतनी है खिलखिलाती किसे है स्मृति पथ में लाती ? अरी पगली , सुन हो गंभीर पिय बिदेस हृदय विकल अधीर श्रृंगार , हार  छूटा है समस्त अस्थिर चित्त ,सुमिरन में व्यस्त अलकें उलझीं , दुर्भर पीड़ा वो मोहिनी छवि केलि- क्रीड़ा नहीं अपराध मेरा है जग - माया यत्र-सर्वत्र तम की छाया क्रूर भाग्य की ये निर्ममता हिय क्रंदित विष विषमता #अर्चना अग्रवाल

भीतर के घाव

पीर बढ़ रही है चलो मुस्कुराते हैं आँख भरने लगी है चलो गाते हैं प्राण हैं विकलित कुछ लिखते हैं भीतर के घाव बाहर कहाँ दिखते हैं  ? तुम कहो शहर हम जंगल कहते हैं गुलमोहर के फूल जहाँ दहकते हैं अपवाद ही अपवाद नियम कहाँ ठहरते हैं जिजीविषा है पर शमशान में रहते हैं इंसानों के वेश में भेड़िये रहते हैं बच्ची भी सुरक्षित नहीं हम कहते हैं कपड़ों ,घूमने को बनाते हैं ढाल प्रशासन की चुप्पी हम सहते हैं #दुआ

चाहती हूँ

चाहती हूँ तुम में छुपे रहना थोड़ा सा एक चाय के कप में रात के चाँद में मंदिर की जोत में कसैले करेले में आईने की बिंदी में गुनगुनी धूप में तुम जब इन्हें देखो , स्पर्श करो मुझे याद करना चाहती हूँ तुम में .... #दुआ

मन का सावन

रोज़ सवेरे जो खोल लेते हो गेसू अब शाम देखूँ कि सवेरा देखूँ चाँद बेपरदा रहे तुम परदे में उसके जमाल को देखूँ कि तुमसे बात करुँ इश्क की बारिश में हम भीगते रहे तेरा इन्कार देखूँ कि मन का सावन देखूँ कसमें दिला- दिला कर मैं तो हार गया रे अपनी कसक देखूँ कि तेरी हया देखूँ #दुआ

पीर बढ़ रही है

पीर बढ़ रही है चलो मुस्कुराते हैं आँख भरने लगी है चलो गाते हैं प्राण हैं विकलित कुछ लिखते हैं भीतर के घाव बाहर कहाँ दिखते हैं तुम कहो शहर हम जंगल कहते हैं गुलमोहर के फूल जहाँ दहकते हैं अपवाद ही अपवाद नियम कहाँ ठहरते हैं जिजीविषा है पर शमशान में रहते हैं इंसानों के वेश में भेड़िए रहते हैं बच्ची भी सुरक्षित नहीं , हम कहते हैं कपड़ों ,घूमने को बनाते हैं ढाल प्रशासन की चुप्पी हम सहते हैं #दुआ

ज़िंदगी

कतरा - कतरा ढूँढता रहा ज़िंदगी एक लिबास की तरह पहनी ज़िंदगी कभी बेहिसाब जी थी ज़िंदगी कभी दर्द के साये में थी ज़िंदगी रूठी थी हम मनाते रहे ज़िंदगी दरवेशों सी भटकती रही ज़िंदगी रिश्तों के मकड़जाल में उलझी ज़िंदगी आँख गीली और रूह प्यासी ज़िंदगी दोज़ख भी और जन्नत भी है ज़िंदगी निगाहे - शौक की तलबगार है ज़िंदगी उम्मीदो- बीम है बड़ी ज़िंदगी फ़ज़ाए - दो-आलम से लिपटी ज़िंदगी शबनम की दो बूँदों में सिमटी ज़िंदगी कभी उफ़ तो कभी हाय है ज़िंदगी #दुआ

तारे पर नाम

चुप रहें अधर संवाद पूरा हो जाए बनूँ ना याचक , याचना स्वीकार हो जाए श्रेय ना मिले तो कोई बात नहीं किसी तारे पर मेरा नाम हो जाए कोई तो याद करे मुझे मरने के बाद किसी का एक क्षण मेरे नाम हो जाए सर्दियों की गुनगुनी धूप लाए मेरा पैगाम किसी की आँखें मेरे लिए नम हो जाएँ #दुआ

नन्ही बदली

वो जो नन्ही सी इक बदली है छुप-छुप कर इशारे करती हैं भिगोकर मेरा तन-मन यूँ मुझे बावरा करती है कभी चाँद की ओट से लुकाछिपी के खेल में वो सरपट दौड़ लगाती है मैं पीछे रह जाऊँ तो मुझे पास बुलाती है फिर खुद शरमा कर हौले से ठिठक मुझे बहलाती है वो जो नन्ही सी इक बदली है छुप - छुप कर इशारे करती है #दुआ

कैसे लिखूँ

कैसे लिखूँ उन बातों को जो कह दी थीं तुमने इक क्षण में जब थम गई थी पृथ्वी रूक गया था सब कुछ बस इक उस क्षण में मैंने जी लिए थे असंख्य जन्म भोला पाखी सा मन चाँद को मुठ्ठी में भर लेना चाहता था तब मैंने स्वयं को उगते देखा था तुम्हारी बाँहों में #दुआ

कांधे का तिल

तेरा कांधे का तिल हमें सोने नहीं देता सोने नहीं देता हमें रोने नहीं देता जब भी याद आ जाए उसकी दुनिया में दिल लगने नहीं देता #दुआ

लम्हे

कुछ लम्हे गिरे थे सहेज लिया नज़ाकत से उन्हें एक रेशमी कढ़ाई के रूमाल में बाद मुद्दत के देखा उन्हें मोगरे के फूल थे महकते हुए #दुआ