प्रेम गीत
कसमसाती देह पर अंकन छोड़ दो
कान में गुनगुना कर मकरंद घोल दो
हम आप घुल जाएँ यूँ इत्र की तरह
यौवन का लरजता तटबंध तोड़ दो
मन से मन , तन से तन कुछ मिले इस तरह
उफनती नदी का चलन मोड़ दो
मैं सिमट कर लाज से दोहरी हो जाऊँ
प्यार की ऐसी मीठी चुभन छोड़ दो
हृदय मेरा तरल हो बावरा हो जाए
धड़कन में कुछ ऐसा स्पंदन हो जाए
जो भी देखे हमें वो ही कहने लगे
काश अपना भी ऐसा मिलन हो जाए
मैं तपती बालू हूँ तुम हो मधुरस प्रिय
बिखरी पंखुरी तुम हो डोर प्रिय
उलझी लट है मेरी सुलझा दो प्रिय
प्रेम संचित निधि दिखला दो प्रिय
बंध, अनुबंध क्यूँ हो परिणय में
गहरी प्रीत छुपी है अनुनय में
भाव , अनुभाव अब मिले इस तरह
सात जन्मों का ये वचन जोड़ दो
#दुआ
Comments
Post a Comment