सच कहो

सच कहो अब भी तुम्हारे ज़हन में आती हूँ क्या ?
यूँ चौखट पर खड़े तुम्हारा इंतज़ार करती पाते हो क्या ?

वो तुम्हें ढूँढती निगाहें वो बेकली मुझमें पाते हो क्या
कुछ कहने को हिलते पर बड़े ख़ामोश लब देखते हो क्या ?

तुम्हें ना पाकर उदास होकर वापिस जाते पाते हो क्या ?

सच कहो अब भी तुम्हारे ज़हन में आती हूँ क्या ?

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