ज़िंदगी

कतरा - कतरा ढूँढता रहा ज़िंदगी
एक लिबास की तरह पहनी ज़िंदगी
कभी बेहिसाब जी थी ज़िंदगी
कभी दर्द के साये में थी ज़िंदगी
रूठी थी हम मनाते रहे ज़िंदगी
दरवेशों सी भटकती रही ज़िंदगी
रिश्तों के मकड़जाल में उलझी ज़िंदगी
आँख गीली और रूह प्यासी ज़िंदगी
दोज़ख भी और जन्नत भी है ज़िंदगी
निगाहे - शौक की तलबगार है ज़िंदगी
उम्मीदो- बीम है बड़ी ज़िंदगी
फ़ज़ाए - दो-आलम से लिपटी ज़िंदगी
शबनम की दो बूँदों में सिमटी ज़िंदगी
कभी उफ़ तो कभी हाय है ज़िंदगी

#दुआ

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