नन्ही बदली

वो जो नन्ही सी इक बदली है
छुप-छुप कर इशारे करती हैं
भिगोकर मेरा तन-मन यूँ
मुझे बावरा करती है
कभी चाँद की ओट से
लुकाछिपी के खेल में
वो सरपट दौड़ लगाती है
मैं पीछे रह जाऊँ तो
मुझे पास बुलाती है फिर
खुद शरमा कर हौले से
ठिठक मुझे बहलाती है
वो जो नन्ही सी इक बदली है
छुप - छुप कर इशारे करती है

#दुआ

Comments

Popular posts from this blog

जब भी देखूँ तेरा चेहरा नज़र आए किताब खुले तो सफ़ा कहाँ नज़र आए तेरी बातें , तेरी यादें और आँखेंतेरी अल्फ़ाज़ में तेरी हँसी नज़र आए दिल लगा के मेरा हाल बुरा हो गया अब आईने में तेरी सूरत नज़र आए

अखबार

सिसकियों की मर्म व्यथा