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Showing posts from 2019

लिखना चाहती हूँ

कुछ पन्ने फ़िर लिखना चाहती हूँ मैं ज़िंदगी दोबारा जीना चाहती हूँ मिटा दूँ कालखंड से चॉक के निशां डस्टर से अतीत पोंछना चाहती हूँ बनूँ फ़िर अपनी मर्जी की मालिक तकदीर फिर लिखना चाहती हूँ न ही कोई विवशता न भय मैं खुल के साँस लेना चाहती हूँ जिऊँ फिर से अपनी शर्तों पर ए ज़िंदगी तुझे अपनाना चाहती हूँ #दुआ

चाँद देखना

तुम अपने शहर में चाँद देखना मैं अपने शहर में मैं उसमें खारे पानी का दरिया देखूँगी तुम भावनाओं के ज्वार देखना वहाँ हमारा छोटा सा घर भी है जिसके दरवाज़े नीलम से बने हैं और रसोई की चिमनी पुखराज से कंदील सितारों के हैं तो खिड़की बादलों की गृह तोरण इंद्रधनुष का ** #दुआ

मेरे सिरहाने

मेरे सिरहाने तेरी यादों के साये हैं आज फ़िर तेरी रहगुज़र में आए हैं वो दूर सुनहरी ख्वाबों की बस्ती है अकीदत से हम उसे बसा आए हैं दिल की दुनिया है बड़ी संगीन सी बस तज़ल्ली हिज़ाब में छुपा लाए हैं कौन है जो रूखे-रोशन नुमायां करता है ख़ाक को मेहरे - ताबां कर लाए हैं एक नूर सा छाया है चारों तरफ़ मुझे लगा वो बेनकाब आए हैं रक्स आफ़ताब का है प्यारा बहुत हम उसे जलता हुआ छोड़ आए हैं आफ़ियत मेरी अब उनसे पूछिए वो अब मेरे मालिक बन आए हैं #दुआ

आज दिल

आज दिल कुछ उदास सा है ज़ख्म भी कुछ खास सा है शिद्दत से निभ जाती थी वो रस्म हाल उसका बदहवास सा है शाम से ही धुंधली यादों का हुजूम मेरे तन्हा दिल के आस-पास सा है मैं चाहती थी वो भी मुझे याद करे पर उसका रूख कुछ नासाज़ सा है अहसास दर्द देते हैं गहराई तलक ए दिल तू क्यों गम - शनास सा है #दुआ

जीना चाहती हूँ

कुछ पन्ने फ़िर लिखना चाहती हूँ मैं ज़िंदगी दोबारा जीना चाहती हूँ मिटा दूँ कालखंड से चॉक के निशाँ डस्टर से अतीत पोंछना चाहती हूँ बनूँ फ़िर अपनी मर्जी की मालिक तकदीर फिर लिखना चाहती हूँ न ही कोई विवशता न भय मैं खुल के साँस लेना चाहती हूँ जिऊँ फिर से अपनी शर्तो पर ए ज़िंदगी तुझे अपनाना चाहती हूँ #दुआ

कभी-कभी

कभी-कभी ख़ुद से बातें करने को जी करता है कभी-कभी ख़्वाबों में रहने को जी करता है ज़िंदगी हर लम्हा रंग बदलती है इन रंगों में रंग जाने को जी करता है दूर है मंज़िल , सफ़र भी है मुश्किल पर एक पल में ही पहुँच जाने को जी करता है महफ़िल में फैली हो जब खामोशी हर तरफ फ़िर तन्हाइयों में रहने को जी करता है ख़ुशियों की दुकानों में मिलती हैं नकली ख़ुशियाँ अब तो मुफ़्त के गम ही पाने को जी करता है कभी-कभी ख़ुद से बातें करने को जी करता है #दुआ

सच कहो

सच कहो अब भी तुम्हारे ज़हन में आती हूँ क्या ? यूँ चौखट पर खड़े तुम्हारा इंतज़ार करती पाते हो क्या ? वो तुम्हें ढूँढती निगाहें वो बेकली मुझमें पाते हो क्या कुछ कहने को हिलते पर बड़े ख़ामोश लब देखते हो क्या ? तुम्हें ना पाकर उदास होकर वापिस जाते पाते हो क्या ? सच कहो अब भी तुम्हारे ज़हन में आती हूँ क्या ?

प्रेम गीत

कसमसाती देह पर अंकन छोड़ दो कान में गुनगुना कर मकरंद घोल दो हम आप घुल जाएँ यूँ इत्र की तरह यौवन का लरजता तटबंध तोड़ दो मन से मन , तन से तन कुछ मिले इस तरह उफनती नदी का चलन मोड़ दो मैं सिमट कर लाज से दोहरी हो जाऊँ प्यार की ऐसी मीठी चुभन छोड़ दो हृदय मेरा तरल हो बावरा हो जाए धड़कन में कुछ ऐसा स्पंदन हो जाए जो भी देखे हमें वो ही कहने लगे काश अपना भी ऐसा मिलन हो जाए मैं तपती बालू हूँ तुम हो मधुरस प्रिय बिखरी पंखुरी तुम हो डोर प्रिय उलझी लट है मेरी सुलझा दो प्रिय प्रेम संचित निधि दिखला दो प्रिय बंध, अनुबंध क्यूँ हो परिणय में गहरी प्रीत छुपी है अनुनय में भाव , अनुभाव अब मिले इस तरह सात जन्मों का ये वचन जोड़ दो #दुआ

खलिश

कुछ एहसास भीगे - भीगे से हैं कुछ कागज़ पर नमी आई तो है तेरे दिल में कुछ खलिश सी है वो बात ज़ुबाँ पर आई तो है #दुआ

अभी ठीक से

अभी ठीक से कहाँ  देख पाई तुम्हें अभी ठीक से कहां चीन्ह पाई तुम्हे                         तुम जो परत दर परत खुलते रहे अभी ठीक से कहां समझ पाई तुम्हें अंतर्मन की गुफा अंधेरी उसमें ना चलती हेरा फेरी कौन है अपना कौन पराया मैं ना समझ पाई  यह माया अभी ठीक से कहां छू पाई तुम्हें अभी ठीक से कहां देख पाई तुम्हें #दुआ

तलबगार ना थे

उनसे ना मिले थे तो तलबगार ना थे और कुछ भी थे मगर बेज़ार ना थे वो जो कसक सी लगे है दिल में हालात अपने आज़ार ना थे ये तीरगी है मेरे मुकद्दर की मेरे हिस्से में ख़ार - ज़ार ना थे सब्र हो तो मोहब्बत कैसी मुन्तज़िर दिल में करार ना थे मेरी निगाह ने ना कुछ बयाँ किया तेरी निगाह से क्या आश्कार ना थे तेरे वादे पे हम जीते हैं सनम मर जाते जो ये ऐतबार ना थे #दुआ

अहसास की खुशबू

घाव अच्छे हैं अब लगते, दर्द होता है थोड़ा सा ये दुआएँ तुम्हारी हैं , मुझे पहले पता ना था तुम दिल के पास हो इतने ,धड़कते हो सीने में मैं ख़ुद को भूल जाती हूँ , मुझे पहले पता ना था ज़िस्म की बंदिशें भूली , भटकती हूँ रूह बनकर ये अहसास की खुशबू , मुझे पहले पता ना था चाँद नमकीन होता है , चखा था कल रात मैंने ज़बाँ का ये ज़ायका , मुझे पहले पता ना था आँखों - आँखों में कह देते हो हज़ारों बातें गुफ़्तगू का ये सिलसिला , मुझे पहले पता ना था #दुआ

संध्या

शांत स्पंदन जल लहरी मैं आ बैठी सागर- तीरे नियति शासन से विवश संध्या अवतरित हुई धीरे-धीरे अश्रु संग तम घोल लिखती पिय वियोग का वह इतिहास कहीं दूर एक नन्ही पाखी सहसा कर बैठी मृदु हास क्यूँ तू इतनी है खिलखिलाती किसे है स्मृति पथ में लाती ? अरी पगली , सुन हो गंभीर पिय बिदेस हृदय विकल अधीर श्रृंगार , हार  छूटा है समस्त अस्थिर चित्त ,सुमिरन में व्यस्त अलकें उलझीं , दुर्भर पीड़ा वो मोहिनी छवि केलि- क्रीड़ा नहीं अपराध मेरा है जग - माया यत्र-सर्वत्र तम की छाया क्रूर भाग्य की ये निर्ममता हिय क्रंदित विष विषमता #अर्चना अग्रवाल

भीतर के घाव

पीर बढ़ रही है चलो मुस्कुराते हैं आँख भरने लगी है चलो गाते हैं प्राण हैं विकलित कुछ लिखते हैं भीतर के घाव बाहर कहाँ दिखते हैं  ? तुम कहो शहर हम जंगल कहते हैं गुलमोहर के फूल जहाँ दहकते हैं अपवाद ही अपवाद नियम कहाँ ठहरते हैं जिजीविषा है पर शमशान में रहते हैं इंसानों के वेश में भेड़िये रहते हैं बच्ची भी सुरक्षित नहीं हम कहते हैं कपड़ों ,घूमने को बनाते हैं ढाल प्रशासन की चुप्पी हम सहते हैं #दुआ

चाहती हूँ

चाहती हूँ तुम में छुपे रहना थोड़ा सा एक चाय के कप में रात के चाँद में मंदिर की जोत में कसैले करेले में आईने की बिंदी में गुनगुनी धूप में तुम जब इन्हें देखो , स्पर्श करो मुझे याद करना चाहती हूँ तुम में .... #दुआ

मन का सावन

रोज़ सवेरे जो खोल लेते हो गेसू अब शाम देखूँ कि सवेरा देखूँ चाँद बेपरदा रहे तुम परदे में उसके जमाल को देखूँ कि तुमसे बात करुँ इश्क की बारिश में हम भीगते रहे तेरा इन्कार देखूँ कि मन का सावन देखूँ कसमें दिला- दिला कर मैं तो हार गया रे अपनी कसक देखूँ कि तेरी हया देखूँ #दुआ

पीर बढ़ रही है

पीर बढ़ रही है चलो मुस्कुराते हैं आँख भरने लगी है चलो गाते हैं प्राण हैं विकलित कुछ लिखते हैं भीतर के घाव बाहर कहाँ दिखते हैं तुम कहो शहर हम जंगल कहते हैं गुलमोहर के फूल जहाँ दहकते हैं अपवाद ही अपवाद नियम कहाँ ठहरते हैं जिजीविषा है पर शमशान में रहते हैं इंसानों के वेश में भेड़िए रहते हैं बच्ची भी सुरक्षित नहीं , हम कहते हैं कपड़ों ,घूमने को बनाते हैं ढाल प्रशासन की चुप्पी हम सहते हैं #दुआ

ज़िंदगी

कतरा - कतरा ढूँढता रहा ज़िंदगी एक लिबास की तरह पहनी ज़िंदगी कभी बेहिसाब जी थी ज़िंदगी कभी दर्द के साये में थी ज़िंदगी रूठी थी हम मनाते रहे ज़िंदगी दरवेशों सी भटकती रही ज़िंदगी रिश्तों के मकड़जाल में उलझी ज़िंदगी आँख गीली और रूह प्यासी ज़िंदगी दोज़ख भी और जन्नत भी है ज़िंदगी निगाहे - शौक की तलबगार है ज़िंदगी उम्मीदो- बीम है बड़ी ज़िंदगी फ़ज़ाए - दो-आलम से लिपटी ज़िंदगी शबनम की दो बूँदों में सिमटी ज़िंदगी कभी उफ़ तो कभी हाय है ज़िंदगी #दुआ

तारे पर नाम

चुप रहें अधर संवाद पूरा हो जाए बनूँ ना याचक , याचना स्वीकार हो जाए श्रेय ना मिले तो कोई बात नहीं किसी तारे पर मेरा नाम हो जाए कोई तो याद करे मुझे मरने के बाद किसी का एक क्षण मेरे नाम हो जाए सर्दियों की गुनगुनी धूप लाए मेरा पैगाम किसी की आँखें मेरे लिए नम हो जाएँ #दुआ

नन्ही बदली

वो जो नन्ही सी इक बदली है छुप-छुप कर इशारे करती हैं भिगोकर मेरा तन-मन यूँ मुझे बावरा करती है कभी चाँद की ओट से लुकाछिपी के खेल में वो सरपट दौड़ लगाती है मैं पीछे रह जाऊँ तो मुझे पास बुलाती है फिर खुद शरमा कर हौले से ठिठक मुझे बहलाती है वो जो नन्ही सी इक बदली है छुप - छुप कर इशारे करती है #दुआ

कैसे लिखूँ

कैसे लिखूँ उन बातों को जो कह दी थीं तुमने इक क्षण में जब थम गई थी पृथ्वी रूक गया था सब कुछ बस इक उस क्षण में मैंने जी लिए थे असंख्य जन्म भोला पाखी सा मन चाँद को मुठ्ठी में भर लेना चाहता था तब मैंने स्वयं को उगते देखा था तुम्हारी बाँहों में #दुआ

कांधे का तिल

तेरा कांधे का तिल हमें सोने नहीं देता सोने नहीं देता हमें रोने नहीं देता जब भी याद आ जाए उसकी दुनिया में दिल लगने नहीं देता #दुआ

लम्हे

कुछ लम्हे गिरे थे सहेज लिया नज़ाकत से उन्हें एक रेशमी कढ़ाई के रूमाल में बाद मुद्दत के देखा उन्हें मोगरे के फूल थे महकते हुए #दुआ

खुशबू की तरह

रात खामोश है मेरे दिल की तरह तेरी याद महके महुआ की तरह ज़िस्म की बात सभी करते हैं रूह को समझो फरिश्ते की तरह मैंने चाँद से तेरा पता पूछा था सर झुकाया उसने इक मुज़रिम की तरह सिमट आई ज़िंदगी इक लम्हे में जी लिया तुझको अब खुशबू की तरह एक अहसास है भीगा - भीगा सा पहली बारिश की सौंधी महक की तरह चराग जलते हैं इंतिज़ार में तेरे आँख भर आई अब दरिया की तरह पथराई आँखों में है एक अक्स ठहरा सा चाँद पर बैठी अम्मा की तरह #दुआ

कविता जन्म लेती है

बढ़ जाती घुटन हृदय में प्रस्फुटित होती काव्य रूप में मौन में भी बातें करे मन उगता है गीत हृदय में ख़ुद की पहचान भी हो जाए दूभर पहली बरसात की सौंधी महक कागज पर अंकित हो जाती है फ़िर एक कविता जन्म लेती है पुकारे स्वयं को स्वयं की धड़कन ठिठके कदम रोए अन्तर्मन मिल जाए नई ज़िंदगी की छुअन फ़िर एक कविता जन्म लेती है आहट आए मृत्यु की आहें भरे साँसों का स्पंदन आँसू रूकें जमें पलकों पर फिर एक कविता जन्म लेती है

काव्य सृजन

बिखरे क्षण समेटना चाहती हूँ हाँ काव्य सृजन करना चाहती हूँ फिसलते वो ज्यों हो रेत के कण छितरते वो ज्यों हो ओस के कण मुक्त हो जीना चाहती हूँ हाँ काव्य सृजन करना चाहती हूँ मिटता है प्रतिपल अस्तित्व पलों का होता है स्पर्श रेंगती ज़िंदगी का इन्हें कागज पर उकेरना चाहती हूँ हाँ काव्य सृजन करना चाहती हूँ

सुलझा लिया जाए

चलो आज रंग-बिरंगे धागों को सहेज लिया जाए उलझने हैं बहुत क्यों न सुलझा लिया जाए कश्मकश नाजुक वक्त की है बड़ी मन को ठहरा कर गहरी साँस ली जाए कौन है यहाँ जो साथ देता है उम्र भर थोड़े साथ को ही शुक्रिया कहा जाए दाग दिल के भी होते हैं बहुत अच्छे बस हर कहीं नुमायाँ ना किया जाए क्यों वफ़ा की उम्मीद रखती हो 'दुआ ' ये वो दौर है जहाँ रिश्तों को भी बेचा जाए #दुआ

अखबार

इन काले सफेद पन्नों के पीछे छुपे हैं कुछ भयावह सत्य जिन्हें देख , पढ़ सुन्न होती शिराएँ कराहों से भरी दर्द की स्याही से लिखी ये खबरें अलसुब्ह मेरी ड्योढ़ी पे आ जाती हैं विश्वास का एक तिनका हृदय के नीड़ से रोज़ तोड़ जाती हैं #अर्चना अग्रवाल

मिसरा बना लूँ

भटकता है दिल दरवेशों की तरह मुमकिन है चाँद पर आशियाना बना लूँ ज़र्द सफ़ों पर लिखीं यादें तेरी मुमकिन है गज़ल का मिसरा बना लूँ #दुआ

प्रेम में अंधता

वो जो अनकहा था शायद अब अनकहा ही रहेगा वो जो पगली सी लड़की थी शायद बुद्धु ही रहेगी मन की असंख्य तहों के नीचे कहीं छुपा है कोहरा सा जो चाहत की ब्रेललिपि में लिखा है जिसे पढ़ने के लिए प्रेम में अंधा होना जरूरी है #दुआ

फास्ट फूड

फास्ट फूड की लूट है लूट सके तो लूट हाय फिर कब खाएंगें , जब प्राण जाएंगें छूट बर्गर लगे है प्यारा नूडल्स पर जी ललचाए पिज्जा , पैटी बिन मोसे रहा ना जाए कहे 'दुआ' सब सुन लो जीभ होये सुखारी मारो गोली डायटिंग को हमें है तोंद भी प्यारी 😆 #दु आ

अच्छा लगता है

वो जो तुम रोते-२ोते हँस देती हो अच्छा लगता है बाते करते हुए दुपट्टे के कोने को दाँतों से काट देती हो अच्छा लगता है चाँद निहारते - निहारते खो जाती हो अच्छा लगता है मेरी शर्ट के बटन टाँक मुस्कुरा देती हो अच्छा लगता है ....

आकुलता

प्राण आकुल तन हो उठा अधीर पुनः आज मलयज समीर प्रिय स्मृति में गाए ललित गान वनिता स्मित नयन कर बैठी मान प्रेम भावना , मधुर पीड़ा धन्य मानस चित्र प्रीति अनन्य निस्तब्ध रात्रि सोए विहंग मनोभाव में उठती तरंग नित नए बाण छोड़े अनंग भटकन हृदय में तृष्णा प्रसंग दर्शन होंगे है अभिलाषा अतिरंजित उर में उमड़ी आशा शाश्वत अनुराग चिरंतन सत्य मोहमुग्ध सृष्टि , स्पंदित नित्य कांपे अधर , उन्माद निखरता सा धूमिल दृष्टि स्वप्न विहँसता सा सुख-दुख निरंतर सृष्टि लगे छलना आह! उलझे अलकें ,आतुर सपना

घड़ी

कुछ घड़ी होती उर्वर नमी पा अश्रु जल की प्रस्फुटित कर देतीं कोंपले काव्य की कुछ पल होते बंजर सदृश भावों , अनुभावों से इतर संवेदनाओं से शून्य रिक्तता से आवृत्त बस , इन दोनों के मध्य ही कहीं तुम्हें गढ़ना है ..... #दुआ

प्रेम कथा

प्रेम के ज्यामितीय आकारों में मुझे वृत्त पसंद था क्योंकि वो केवल तुम्हारे चहुँओर था और तुम्हें त्रिकोण चूंकि वो किसी तीसरे के साथ था मैं वृत्त में तुम्हारे इर्दगिर्द घूमती रही तुम किसी तीसरे के साथ भी बस , इतनी सी थी हमारी प्रेम कथा .. #दुआ

तू जाने

तेरे दिल की चौखट पे सज़दा कर दिया मैंने अब इकरार तू जाने , इन्कार तू जाने इश्क की तमाम रस्में अदा की मैंने अब वफ़ा तू जाने , ख़ता तू जाने #दुआ

और कहाँ

रुधिर पूर्त नसें भयंकर ज्वाला शमन उपचार प्रिय ने निकाला बाधा , विलंब ना माने मन क्षण भर सुख शीतल तन आहत मान हुआ पराभूत स्मृति बनी शांति दूत जीवन जागरण , सुषुप्ति मरण माँस मज्जा का ये आवरण कुछ प्रकाश धूमिल सा दीख रहा मौन खिन्न , अवसाद भरा दूरागत ध्वनि सुनती यहाँ ऐसी निस्तब्धता और कहाँ #दुआ

मिलन

आदित्य अवसान हुआ नभ में  मैं पुलक , रोमांचित हुई हिय में  अति उत्सुक शशि स्वागत के लिए  संध्या मादक हुई अपरिमेय   तिमिर आच्छादित प्रांगण में  पिय की छवि है कंगन में  दीप प्रज्जवलित शोभायमान  मिलन बेला निकट जान  #दुआ

ध्यान

हृदय में जागी नव अभिलाषा कुछ अतिरंजित कुछ उत्प्रेरक सी विचारों की यह नव तरिणी होती अग्रसर नवयौवना  सी मैं तटस्थ बैठी ध्यानमग्न देख रही ये नव विचलन जीवन का नूतन मार्ग यह अहा ये कैसी नवसृष्टि नेत्र उन्मीलित पलकें संकुचित श्वास स्वर मध्यम मैं अंतस में उतर गई हुआ प्रकाश पुंज साक्षी मेरा नवजीवन मैंने प्राप्त किया हे सृष्टि नियामक धन्यवाद तेरा #दुआ

सपना

रोज़ देखती हूँ एक सपना रोज़ तोड़ देती हूँ पसीने से सीज़ी हथेली पर कितने रंग संजोती हूँ आकाश पर उड़ती चील कलम मेरी छीन लेती है अधूरी कुछ कहानियाँ , कुछ कविताएँ इर्द-गिर्द मंडराती हैं गीली भावनाएँ , प्यासी आँखें फिर दिखाती हैं नया सपना #दुआ

नशा

इक चाहत नशे में कैद होने की नशा बोतल का होता तो मुनादी सरेआम करती ज़ालिम नशा - ए - झ्श्क जो ना जीने दे  ना मरने दे

बसंत तुम

मधुमय बसंत तुम जीवन धन तुम अलसाई अलकों में राग चंद्र तुम कुंतल जाल पाश में मेरे हृदय को करती कैद तुम पुलकित , उन्नत सर्वांग मेरा मधुकरी का संचित धन तुम

चिठ्ठी

आज भी याद आती है वो कलम से लिखी चिठ्ठी जिस पर मिलती थीं अपनों की खबरें वो दुख की तस्वीरें वो सुख की तहरीरें पेड़ों पर लगे आम खेतों में लहलहाता धान सब दिखता था उसमें अम्मा की दवा का ब्यौरा छोटू की फरमाइशें सब खो गया कहीं what's app से फारवर्ड जो हो गए हम #दुआ

कुर्सी

हे कुर्सी माता कैसे करूँ मैं तेरी श्लाघा तुम ही जग को नचाती हो स्वप्न में नित भरमाती हो छ्ल, प्रपंच सब तुम्हरे कारण दूध मलाई दे जाती हो ठाठ - बाठ सब नौकर-चाकर संग अपने लाती हो निशिदिन करूँ आरती मैया दे दो अपनी कृपा की छैयाँ #दुआ

भूख

जी हाँ 'भूख ' हूँ मैं मेरा नाम एक घर अनेक मैं रहती हूँ पेट की अंतड़ियों में छुपी कातर नयन , फैले हाथ में कहीं मेरा घर है लाला की तिजोरी में जो जितनी भरे खाली रहे मुझे चीन्ह सकोगे हवसी आँखों में तुम वस्त्रों को चीर देखते पाओगे गुम जी हाँ 'भूख ' हूँ मैं #दुआ

माँ

आज माँ से बातें करना चाहती हूँ ढेर सारी बादलों के पार , चंदा के गाँव में जो भी लाइन मिला दे उस नेटवर्क से जुड़ना चाहती हूँ पिछले इक्कीस सालों का बिछोह सारे रंजो गम , खुशियाँ जल्दी से बयाँ करना चाहती हूँ एक बार फिर उसके सीने से लिपट देह-गंध पाना चाहती हूँ काश... #दुआ